बी ए - एम ए >> एम ए सेमेस्टर-1 हिन्दी प्रथम प्रश्नपत्र - हिन्दी काव्य का इतिहास एम ए सेमेस्टर-1 हिन्दी प्रथम प्रश्नपत्र - हिन्दी काव्य का इतिहाससरल प्रश्नोत्तर समूह
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हिन्दी काव्य का इतिहास
प्रश्न- रामभक्ति शाखा तथा कृष्णभक्ति शाखा का तुलनात्मक विवेचन कीजिए।
उत्तर -
रामभक्ति शाखा एवं कृष्णभक्ति शाखा
राम भक्ति शाखा एवं कृष्णभक्ति शाखा में पर्याप्त अन्तर एवं समानताएँ हैं। सगुण काव्य के राम एवं कृष्ण दोनों ही विष्णु के अवतार हैं। दोनों के प्रति सगुण भक्ति का विधान है और दोनों के प्रति आत्मसमर्पण एवं अनन्य निष्ठा प्रदर्शित की गयी है परन्तु फिर भी दोनों में सिद्धान्तगत एवं शैलीगत अन्तर है और दोनों में दृष्टिकोण सम्बन्धी मतभेद हैं। रामकाव्य तथा कृष्णकाव्य की तुलना यदि सिद्धान्त की दृष्टि से करें तो निम्नांकित तथ्य सामने आते हैं -
(1) रामकाव्य में भक्ति दास्य भाव की है, जिसे बैधी भक्ति के अन्तर्गत रखा जाता है। इसमें मर्यादा पर अधिक बल दिया जाता है। रामकाव्य में वर्णाश्रम धर्म, कर्मकाण्ड और वेद- मर्यादा आदि के प्रति पूर्ण विश्वास व्यक्त किया जाता है। कृष्णकाव्य में प्रतिपादित भक्ति माधुर्य भाव की है, जिसे रागानुगा भक्ति की सीमा में स्थान प्राप्त है। कृष्णभक्ति कवियों के यहाँ मर्यादा के लिए कोई स्थान नहीं है।
(2) रामकाव्य मे राम आराध्य हैं अतः बड़े हैं और उनके भक्त छोटे हैं। "राम सौ बड़ो कौन मोसों कौन छोटो" इसीं लघुत्व के कारण कहा गया है। इसके विपरीत कृष्ण काव्य में कृष्ण भक्तों के सखा हैं और जहाँ आराध्य एवं आराधक में सखा भाव रहता है, वहाँ बड़े छोटे का कोई भेद नहीं रहता। सूर के सख्य भाव से भक्ति से प्रेरित होकर ही कहा है -
"खेलत में को काकौ गुसैयाँ'
(3) शुद्ध भक्ति की दृष्टि से वैधी भक्ति को ईश्वर सान्निध्य का यदि प्रथम सोपान माना जा सकता है, तो रागानुगा भक्ति को उसका अन्तिम सोपान।
(4) रामकाव्य में लोकसंग्रह और लोकरक्षक की भावना का प्राधान्य है, तो कृष्णकाव्य में लोकरंजन की ओर ही कवियों का सारा ध्यान केन्द्रित रहा है। लोकसेव्य भाव की भक्ति होने के कारण रामकाव्य में मर्यादाओं का एकमात्र भी अतिक्रमण नहीं मिलता है। जबकि सखा भाव की भक्ति में मर्यादाएँ अति निकटता व सामीप्य के कारण स्वतः ही टूट जाती हैं।
(5) रामकाव्य में किसी प्रकार की कोई आध्यात्मिक प्रतीकात्मकता नहीं मिलती है, जबकि कृष्णकाव्य में सभी पात्रों का प्रतीकात्मक व्यक्तित्व निरूपित हुआ है॥
(6) रामकाव्य के प्रमुख प्रवर्तक रामानुजाचार्य हैं और बाद में इसी मार्ग पर चलकर रामानन्द ने रामोपासना को प्रचारित किया है तथा कृष्णकाव्य प्रमुख प्रवर्तक बल्लभाचार्य हैं।
दृष्टिकोण के आधार पर तुलना - रामभक्तों व कृष्णभक्तों ने अपने-अपने दार्शनिक दृष्टिकोणों के आधार पर अपने उपास्यों के प्रति भक्ति की नाना विधाओं को ग्रहण किया है।
(1) कृष्ण काव्य में मथुरा रति का महत्व सर्वोपरि है, परन्तु राम काव्य समन्वय की विचाट चेष्टा को लेकर चला है। भाव, भाषा, शैली, छन्द तथा इष्टदेव सभी क्षेत्रों में समन्वय मिलता है। तुलसी ने राम को महत्व दिया है और सूर ने कृष्ण को।
(2) महाकवि तुलसीदास ने भगवान राम की महिमा का गुणगान अधिक किया है, जबकि सूरदास जी ने कृष्ण की आराधना की है। सूर को छोड़ दिया जाये तो स्पष्ट हो जाता है कि सभी कृष्णभक्ति कवि पुष्टिमार्गी होने के कारण ही साम्प्रदायिकता के लिए प्रसिद्ध हैं, जबकि रामकाव्य इससे परे हैं।
जनसम्पर्क व युगजीवन के आधार पर तुलना - इस प्रकार है-
(1) इस बिन्दु पर कृष्ण काव्य अधिक समृद्ध है। वह स्वान्तः सुखाय होकर भी सर्वसुखाय है।
(2) राम काव्य में तत्कालीन सामाजिक, धार्मिक और राजनीतिक परिस्थितियों के घात-प्रतिघात का सजीव चित्रण मिलता है, जबकि कृष्ण काव्य में न तो जनजीवन का कोई चित्रण मिलता है और न ही युगीन परिस्थितियों का आंकलन निरूपन ही मिलता है।
(3) राम काव्य के पात्र अतिमानवीय और अलौकिक तो हैं किन्तु फिर भी वे ऐसे होकर भी हमारे बीच के लगते हैं। हमारे दैनिक जीवन में काम आने वाले प्रतित होते हैं, जबकि कृष्ण काव्य में ऐसा नहीं है। कृष्ण के भक्तों की दुनिया तीन लोक से न्यारी है। वे कृष्ण की रागानुभक्ति में इतने विरक्त रहे हैं कि उन्हें दीन-दुनिया की खबर ही नहीं रही है।
(4) कृष्ण काव्य के कृष्ण 'नीवी बन्धन' तक खोलने का उपक्रम करते हैं, श्रीफलों का स्पर्श करते हैं, किन्तु राम काव्य के राम बड़े शिष्ट और मर्यादावादी होने के कारण कुप्रभावी कवियों की ओर ध्यान तक नहीं देते हैं। असल में रामभक्त कवियों को समाज के हित अनहित का बोध है और कृष्ण भक्ति कवि अपने में मस्त हैं।
भाषा की दृष्टि से तुलना - इस प्रकार है -
(1) राम काव्य की भाषा अवधी है, जो कि राम की जन्मभूमि से सम्बन्धित है, जबकि कृष्ण काव्य की भाषा ब्रजभाषा है। कृष्ण काव्य भाषा के स्तर पर केवल ब्रज की माधुरी तक ही सीमित रहा है। जबकि राम काव्य की भाषा अवधी से लेकर ब्रज तक फैली है। तुलसी की विनयपत्रिका इसका सशक्त प्रमाण है।
(2) भाषागत परिष्कृति और तत्समी वृत्ति जो राम काव्य में है, वह कृष्ण काव्य में कहीं नहीं मिलती है।
रचना शैली की दृष्टि से तुलना - इस प्रकार है-
(1) राम काव्य प्रबन्ध शैली प्रधान है और कृष्ण काव्य की शैली मुक्तक प्रधान है।
(2)शैली वैविध्य की दृष्टि से राम काव्य समृद्ध है तो कृष्ण काव्य संकीर्ण और निर्धन है।
निष्कर्ष - वस्तुतः सम्पूर्ण कृष्णभक्ति काव्य आनन्द एवं उल्लास का काव्य है और भावना की दृष्टि से वह काव्य अनुपम है। आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी के शब्दों में कृष्ण काव्य मनुष्य की रसिकता को उबुद्ध करता है। उसकी अन्तर्निहित लालसा को ऊर्ध्वमुखी करता है और उसे निरन्तर रसासक्ति बनाता है। सामान्य प्रवृत्तियों का तुलनात्मक विवेचन करने पर हम संक्षेप में यही कह सकते हैं कि सगुण काव्यधारा के दोनों काव्य रामभक्ति भाव एवं कृष्णभक्ति भाव में पर्याप्त अन्तर रखते है। यों तो दोनों का महत्व है किन्तु व्यापकता की दृष्टि से राम काव्य श्रेष्ठ है भले ही उसका कृष्ण काव्य की तुलना में कम विकास एवं प्रचार हुआ है।
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- प्रश्न- 'नई कविता' से क्या तात्पर्य है?
- प्रश्न- प्रयोगवाद और नयी कविता के अन्तर को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- समकालीन हिन्दी कविता तथा उनके कवियों के नाम लिखिए।
- प्रश्न- समकालीन कविता का संक्षिप्त परिचय दीजिए।